अपने देश में इस समय कामचोरी और मुफ्तखोरी महामारी का रूप लेता जा रहा है और इसको बढ़ावा देने में राज्य एवं केन्द्र सरकार भी कंधे से कंधा मिलाकर एक दूसरे का सहयोग कर रही हैं।
चुनाव आने के पूर्व ही समस्त राजनैतिक दल किस्म-किस्म के लोक लुभावन घोषणायें करती हैं कोई नगद पैसा कोई मुफ्त अनाज तो कुछ पार्टियां मंगलसूत्र तक देने की घोषणा कर चुकी हैं खासकर तमिलनाडू में मंगलसूत्र देने की घोषणा जयललिता की पार्टी द्वारा की गई थी जो मिला कि नहीं इसके बारे में जानकारी नहीं है। अभी हाल ही में हुये झारखंड एवं महाराष्ट्र के चुनावों में महिलाओं को इक्कीस और पचीस सौ रूपये देने की घोषणा की गई और जिन पार्टियों ने भी यह घोषणायें की उन्हें जनता ने सत्ता पर बिठा दिया। इसी तरह छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश में भी महिलाओं को ़क्रमशरू एक हजार एवं पंद्रह सौ रूपये देने की घोषणा करके सत्ता हासिल कर ली गई तथा प्रतिमाह पैसे घोषित हितग्राहियों के खाते में पंहुच भी रहा है मगर इससे प्रदेश का विकास बाधित हो रहा है अगर पैसा गरीब, असहाय, विकलांग बुजुर्ग महिलाओं को मिलता तो किसी को भी आपत्ति नहीं थी मगर यहां तो क्या मजबूर क्या मजबूत सभी को उपकृत किया जा रहा है भले ही बाद में प्रदेश की आर्थिक कमर क्यों न टूट जाये। इसी तरह से केन्द्र सरकार द्वारा पूरे देश में अस्सी करोड़ परिवारों को प्रति व्यक्ति पांच किलो अनाज मुफ्त में दिया जा रहा है इसके अलावा छ.ग. की सरकार प्रति परिवार पैंतीस किलो चावल एवं नमक मुफ्त में दे रही है और इसको प्राप्त करने वाले अस्सी प्रतिशत लोग इसके पात्र नहीं है क्योंकि इनमें से अधिकांश सम्पन्न या मजबूत स्थिति वाले हैं जो कोई भी काम करके अपने परिवार की जीविका चला सकते हैं लेकिन इस मुफ्त के माल के चक्कर में इनमें से अधिकांश कामचोर हो गये हैं जो कुछ भी करना नहीं चाहते अब तो जन्म से मरने तक का सारा जिम्मा सरकार सम्हाल चुकी है। किसी भी दम्पति को दो संतान तक बच्ची होने पर उन्हें शासन से ऐसे प्रसव को बढ़ावा देने के नाम पर एक निश्चित रकम मिलती है बच्चा अगर शासकीय अस्पताल में पैदा हो तो उसके लिये भी पैसा मिलता है फिर बच्चों का अन्नप्राशन सरकार कराती है बड़े होने पर शादी विवाह शासन कराती है किसी व्यक्ति के मरने पर बीस हजार रूपये सरकार देती है फिर लोगों को जरूरत क्या है काम करने की। यही कारण है कि राशन दुकान से मुफ्त का चावल लेकर सीधे दुकानों में बेच दिया जाता है फिर वही चावल राईस मिलों में पहुंचता है फिर वापस राशन दुकान पर। इस तरह के खेल में सिर्फ सरकार या यूं कहें आमजन का नुकसान हो रहा है क्योंकि विकास के काम नहीं हो पा रहे हैं या फिर उसे कराने के लिये राज्य सरकारों को कर्ज लेना पड़ा रहा है जो कि खतरे की ही घंटी है।
इसी तरह से यू.पी.ए. सरकार ने लोगों को रोजगार देने के नाम पर पूरे देश में मनरेगा योजना शुरू की थी जो आज भी जारी है इस योजना के तहत गांव में कच्ची सड़क, तालाब निर्माण, छोटी पुलिया इत्यादि के निर्माण कराये जाते हैं ताकि गांव के लोगों को गांवों में ही रोजगार मिल सके मगर ये मनरेगा भी कामचोरों का पसंदीदा रोजगार बन गया है। मनरेगा में काम करने वाले लोग भी उसी गांव के या आसपास के होते है इसलिये सुबह-सवेरे ही कोड़ी-कुदारी लेकर काम पर आ जाते है थोड़ा मोड़ा मिट्टी छीले या काटे इधर-उधर बिखराकर फिर घर जाकर आराम करते हैं दूसरे दिन फिर यही काम यानि मनरेगा में आराम ही आराम और दाम पूरा। अगर कोई उपयंत्री या एस.डी.ओ. इनको काम ठीक से करने की हिदायत देता है या ऐसा नहीं करने पर भुगतान रोक देता है तो सभी मजदूर पिकप में लदकर कलेक्टर से मिलने आ जाते हैं तथा रोनी सूरत बनाकर मजदूरी नहीं मिलने की दुहाई देते हैं जिस कारण अधिकारियों को डांट भी सुननी पड़ती है और भुगतान भी करना पड़ता है इसी कारण मनरेगा के कार्यों में प्रोग्रेस हो या न हो कोई भी अधिकारी अब इसमें अपनी टांग नहीं फंसाना चाहता। मेरे एक परिचित ठेेकेदार ने बताया कि अगर मनरेगा के कार्यों की विधिवत जांच हो तो इसमें कोई नहीं बच सकता है। बाकी देश में मनरेगा के कार्यों की क्या स्थिति है यह तो पूरी तरह से नहीं मालूम मगर अपने छत्तीसगढ़ में मनरेगा में कामचोरों की पौ बारह है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में केंद्र सरकार ने मनरेगा में कामों में काफी कटौती कर दी है मगर बाकी मुफ्त के सामानों की बंदरबांट पर रोक नहीं लग पा रही है यही कारण है कि मुफ्त का माल तथा मनरेगा का काम देश की पीढ़ी को कामचोरी की और धकेल रही है जिसपर अनेक लोग चिंता भी व्यक्त कर रहे हैं मगर सरकारें सत्ता की लालच में इन पर किसी तरह की रोक लगाने में लाचार हैं कुछ माह पूर्व एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने लोगों को मुफ्त में सामान देने पर चिंता जाहिर की थी तथा यह कहा था कि ऐसे में लोग कामचोर हो जायेंगे।
राजनेताओं से तो इस मामले में किसी प्रकार की उम्मीद करना बेकार है हां अगर सुप्रीम कोर्ट चाहे तो वही कुछ कर सकती है बाकी भगवान की इच्छा……..।
– त्रिलोक कपूर कुशवाहा
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